कुछ लोगों की नाक पर विराजमान है ग़ुस्सा,
कुछ लोगों की झूठी शान है यह ग़ुस्सा।
पर असल में क्या है यह ग़ुस्सा?
अपनी झल्लाहट दूसरों पर डालना …… है ग़ुस्सा।
अपनी मज़बूरी दबाकर बोलना …… है ग़ुस्सा।
अपनी नाकाबिलीयत को छुपाना …… है ग़ुस्सा।
अपने को हावी होने का नाटकीय तरीक़ा …… है ग़ुस्सा।
अपने वजूद को ज़बरदस्ती दिखाना …… है ग़ुस्सा।
और सबसे विशेष ग़ुस्सा –
अपनी ताक़त का मज़लूम पर ग़लत इस्तेमाल।
पर क्या मिलता है इस ग़ुस्से से?
दूसरों को कुछ नहीं,
खुद को शारीरिक और मानसिक तनाव।
इसी का तो करना है अभाव।
अजी शांत रहिए जनाब,
आपके कान से धुआँ निकलना शुरू हो…
इससे पहले शीतल जल पीजिए,
कुछ मीठा खाइए,
रणभूमि से दूर निकल जाइए।
फिर देखिए, दुनिया हसीन लगेगी।
वह रिक्शा जो आपको टक्कर देकर निकल जाती थी,
अब एक खिलौना लगेगी।
आपके बॉस का चेहरा ए.टी.एम. जैसा दिखेगा।
बच्चों के कम अंक आने पर ग़ुस्साइए नहीं,
अपने दिनों को याद कीजिए,
आशा की किरण दिखेगी।
और जनाब, दुनिया भी तो कहे—
“वह बहुत बहादुर था…
क्योंकि उसे अपने ग़ुस्से पर क़ाबू था।”
Waah ..kya baat..solah aane sach
Amazing and so true
“बहुत ही सुंदर और प्रेरणादायक रचना। ग़ुस्से को काबू में रखना ही असली बहादुरी है।”😊
Wowwww lovely 💖💖
जला दे जो दुनिया वो आग है गुस्सा
बना दे जो खुद को खाक है गुस्सा
काबू मे रख ..ना हो, ना कर, परेशां
कहीं नही होगा, अच्छा इन्सान कोई तुम सा…
Me…. got motivated🤩
Wah…wah…👏👏👏
.very well expressed …
A great topic, very well compiled 🙂